Not known Details About baglamukhi sadhna

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मेरे पास ऐसे बहुत से लोगों के फोन और मेल आते हैं जो एक क्षण में ही अपने दुखों, कष्टों का त्राण करने के लिए साधना सम्पन्न करना चाहते हैं। उनका उद्देष्य देवता या देवी की उपासना नहीं, उनकी प्रसन्नता नहीं बल्कि उनका एक मात्र उद्देष्य अपनी समस्या से विमुक्त होना होता है। वे लोग नहीं जानते कि जो कष्ट वे उठा रहे हैं, वे अपने पूर्व जन्मों में किये गये पापों के फलस्वरूप उठा रहे हैं। वे लोग अपनी कुण्डली में स्थित ग्रहों को देाष देते हैं, जो कि बिल्कुल गलत परम्परा है। भगवान शिव ने सभी ग्रहों को यह अधिकार दिया है कि वे जातक को इस जीवन में ऐसा निखार दें कि उसके साथ पूर्वजन्मों का कोई भी दोष न रह जाए। इसका लाभ यह होगा कि यदि जातक के साथ कर्मबन्धन शेष नहीं है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। लेकिन हम इस दण्ड को दण्ड न मानकर ग्रहों का दोष मानते हैं।व्यहार में यह भी आया है कि जो जितनी अधिक साधना, पूजा-पाठ या उपासना करता है, वह व्यक्ति ज्यादा परेशान रहता है। उसका कारण यह है कि जब हम कोई भी उपासना या साधना करना आरम्भ करते हैं तो सम्बन्धित देवी – देवता यह चाहता है कि हम मंत्र जप के द्वारा या अन्य किसी भी मार्ग से बिल्कुल ऐसे साफ-सुुथरे हो जाएं कि हमारे साथ कर्मबन्धन का कोई भी भाग शेष न रह जाए।

रिपोर्जिह्वां त्रि-शूलं च, पीत-गन्धानुलेपनाम् more info । पीताम्बर-धरां सान्द्र-दृढ-पीन-पयोधराम् ॥

तेन दीक्षेति हि् प्रोक्ता प्राप्ता चेत् सद्गुरोर्मुखात।।

१८. ॐ ह्लीं श्रीं खं श्रीभग-मालायै नमः -दक्ष-कर्पूरे (दाएँ हाथ की कोहनी में) ।

वज्रारि-रसना-पाश-मुद्गरं दधतीं करैः । महा-व्याघ्रासनां देवीं, सर्व-देव-नमस्कृताम् ।।३

पीत-बन्धूक-पुष्पाभां, बुद्धि-नाशन-तत्पराम् ।



पीतार्णव-समासीनां, पीत-गन्धानुलेपनाम् ।

८. ॐ ह्लीं श्रीं ऋं श्रीदुर्द्धरायै नमः-वाम-नासा-पुटे (बाएँ नथुने में) ।

‘अदितिः’ अविनाशी-स्वरूप देव-माता ‘उपस्थे’ हम उपासकों के समीप, ‘शिवा’ कल्याण-स्वरूपवाली, ‘अस्तु’ हो।

‘विनाशय’-पदं पातु, पादांगुल्योर्नखानि मे । ‘ह्रीं’ बीजं सर्वदा पातु, बुद्धीन्द्रिय-वचांसि मे ।।११सर्वाङ्गं ‘प्रणवः’ पातु, ‘स्वाहा’ रोमाणि मेऽवतु । ब्राह्मी पूर्व-दले पातु, चाग्नेय्यां विष्णु-वल्लभा ।। १२

पीनोन्नत-कुचां स्निग्धां, पीतालाङ्गीं सुपेशलाम् । त्रि-लोचनांचतुर्हस्तां, गम्भीरांमद-विह्वलाम् ।।२

गदाऽभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्वि-भुजां नमामि ।।२

को नमस्कार। अथवा पीले वस्त्रवाली देवी को नमस्कार। बगला-मुखी-शत्रु-विनाशक-कवचम्

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